दोस्तों नमस्कार स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग में मैं आज आपको एक ऐसा उदाहरण बताने जा रहा हूं जो आप को बड़ी जल्दी समझ आ जाएगा कि आप किस प्रकार से जाने-अनजाने अवैज्ञानिक परंपराओं को शुरू कर देते हैं।
दोस्तों एक बार एक अंधे व्यक्ति का विवाह एक अंधी महिला से हो जाता है । विवाह के बाद जब भोजन पकाने की बारी आती है तो उस अंधी महिला को रसोई में भोजन पकाने के लिए भेजा जाता है । वह महिला भोजन बना तो लेती है परंतु जब वह खाने के लिए बैठते हैं तो बर्तन में रोटी नहीं मिलती, ऐसा लगातार कई दिन होता है। अंधे व्यक्ति को एक आईडिया आता है और वह एक पुराना बांस लेकर रसोई के दरवाजे पर बैठ जाता है ,जब भाई वह महिला रसोई के अंदर भोजन पकाने के लिए जाती थी। यह आइडिया कामयाब हो जाता है और उस दिन उनको भरपेट भोजन खाने को मिलता है । क्योंकी शायद बिल्ली या कुत्ता उस दिन रोटी चुराने में कामयाब नहीं हो पाए ,कारण अंधा व्यक्ती रसोई के दरवाजे पर बांस को जमीन पर पटक रहा था। दोस्तों समय बीतता है उनके बच्चे होते हैं तो जब उस अंधे व्यक्ति के बच्चे जवान हो जाते हैं तो वह अपने बेटे की शादी करता है। घर में बड़ी खुशी थी और जब उस नई बहू को रसोई में भोजन पकाने के लिए भेजा जाता है तो अंधे का लड़का अपने पिता की तरह एक बांस लेकर दरवाजे पर बैठ जाता है और उसे जमीन पर पटकने लगता है । यह बात उसकी पत्नी को समझ नहीं आती है क्योंकि यह कार्य हर रोज होने लगता है तो पत्नी पूछ ही लेती है कि यह आप क्या करते हो ? जब भी मैं रसोई में भोजन तैयार करने के लिए जाती हूं तो आप रसोई के दरवाजे पर बांस पीटने लग जाते हो ?! इस पर अंधे का बेटा कहता है कि यह हमारी परंपरा है कि जैसे ही नई बहू रसोई में खाना पकाने के लिए जाती है तो पुरुष रसोई के दरवाजे पर बैठकर बांस पीटता रहेगा, जब तक खाना तैयार नहीं होता। क्योंकि उसने अपने पिता को सदा रसोई के दरवाजे पर बांस पीटते देखा था जब भी उसकी मां खाना बनाती थी। इस पर उसकी पत्नी बोली कि शायद हमारे माता-पिता तो अंधे होने के कारण ऐसा करते थे परंतु हम तो अंधे नहीं हैं हमें यह काम नहीं करना चाहिए। परंतु उसका पति कहता है कि यह हमारे परिवार की परंपरा है इसे हम नहीं छोड़ सकते । उसकी पत्नी फिर कहती है जरा विचार करो हमारे माता पता संभवतः अंधा होने के कारण ऐसा करते हो कोई पशु रोटी खा जाता हो और हमारे माता-पिता भूखे रह जाते होंगे जिस कारण से इन्होंने यह उपाय निकाला होगा ताकि वह अपना पेट भर सके परंतु हम तो अंधे नहीं है हमें ऐसा नहीं करना चाहिए और यह बात उस अंधे के बेटे को समझ आ जाती है और उसके बाद वह यह जो काम करने लगा था उसे वह छोड़ देता है।
दोस्तों इस कहानी को बताने का केवल एक ही उद्देश्य है कि हमें अवैज्ञानिक सुनी सुनाई बातों के आधार पर परंपराओं को नहीं चलाना चाहिए। जो वैज्ञानिक और शुद्ध परंपराएं हैं उन्हीं को चलाना चाहिए क्योंकि जो आज जो कार्य आप शुरू करेंगे वह आने वाली पीढ़ियों के लिए परंपरा बन जाती है। इसलिए सावधान रहें आने वाली पीढ़ियों को ज्ञान दे विज्ञान दे।
अब आप विचार करें आप कौन कौन से कार्य ऐसे हैं दैनिक जीवन के जो विचार कर करते हैं। जैसे पीपल का पूजन इसलिए किया जाता था ताकि यह वृक्ष सदा ऑक्सीजन देता है तो इसकी सुरक्षा होना बहुत जरूरी था परंतु हमारे परिवारों में हमारे जो पूर्वज हैं जो बड़े हैं हमें कहते हैं कि यह वृक्ष पंडित है इसको किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचानी है। लॉजिक आक्सीजन का मिलना है पंडित तो मनुष्य बन सकता है पेड़ नहीं।
🖊️ एमसी योगी 9354666466
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