मेरे श्रेष्ठ पूर्वज भगत सिंह, चंद्रशेखर
आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, संत रविदास, महर्षि वाल्मीकि यज्ञोपवीतधारी थे ।आओ श्रावणी पर्व पर हम भी अपने पूर्वजो का अनुसरण करे l
🙏#श्रावणी_उपाकर्म के महापर्व की आप सभी बंधुओ बहनों को हार्दिक बधाई एंव शुभकामनाऐ ।
श्रावणी उपाकर्म : वैदिक काल की शाश्वत परंपरा
उपाकर्म का अर्थ है प्रारंभ करना। उपाकरण का अर्थ है आरंभ करने के लिए निमंत्रण या निकट लाना। प्राचीन काल में यह विद्या के अध्ययन के लिए विद्यार्थियों का गुरु के पास एकत्रित होने का काल था।
क्योकि इन वर्षा ऋतु के दिनो मे साधु-संत वनो मे न रहते थे ओर वे गांवो के समीप आ जाते थे,,, ओर फिर जो भी मनुष्य उनसे मिलने के लिए जाते ज्ञान, विद्या ग्रहण करने के लिए जाते तो आचार्य गण उन सभी का यज्ञोपवीत करवाकर फिर विद्या देते ,,,,
फिर यज्ञ कर यज्ञोपवीत धारण करवाकर शिक्षा देते,,,,,,
#यज्ञोपवीत के तीन धागों को धारण करने से हर मनुष्य व्रत लेता है कि :-
१-तीन धागे पितृ ऋण - ऋषि ऋण - देव ऋण का स्मरण करवाते हैं और उनसे उऋण होने का जीवन भर प्रयास करता है -
#पितृ_ऋण: मैं अपने माता पिता की हर सत्य व उचित आज्ञा पालन करूँगा और उन्होंने मुझे जो पालने व बड़ा करने में कष्ट उठाये उनसे अपनी सेवा द्वारा उऋण होने की सदा जीवन भर कोशिश करता रहूँगा।
#ऋषि_ऋण: मैं अपने आचार्य या गुरू जिससे शिक्षा ग्रहण की उसकी शिक्षाओं पर पूरा उतरूँगा कभी सत्य विद्या के मार्ग से भटकूँगा नहीं।
#देव_ऋण: मैं सदा ईश्वर का धन्यवाद करूँगा जो उन्होंने मुझे मनुष्य जन्म दिया और जीवन यापन का हर साधन दिया तथा विद्या का प्रकाश करके मुझे योग से मोक्ष का मार्ग बताया।
२-मन - वचन - कर्म से पवित्रता रखूँगा
३-ज्ञान - कर्म - उपासना
= आपने ज्ञान को निरन्तर बढ़ाता रहूँगा और उस ज्ञान के अनुसार कर्म करूँगा फिर मैं ईश्वर की उपासना से ज्ञान और कर्म को खंडित न करने का दृढ़ संकल्प प्राप्त करूँगा।
यह व्रत स्त्री पुरूष सहित हर मनुष्य को लेने चाहिए।
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