#महाशिवरात्रि #सत्य #प्रकाश
आज की रात्रि ही वो रात्रि थी जिसमें मूलश्नकर जी को यह पक्का हो गया था कि जड़ पूजा की बजाय चेतन तत्व को ही पूजना है. यह एक क्रांतिकारी बदलाव था. इसी बदलाव के कारण वो सत्य प्राप्ति के पथ पर बढ़ पाए. कई वर्षो के कठोर तप और पुरुषार्थ के बाद सत्य को प्राप्त कर पाए.
महर्षि जी ने संसार को सार दिया कि अष्टांग योग ही सबसे सरल और एकमात्र एसा पथ है जो आत्मा को उस परम चेतन को अनुभव करा सकता है. सत्य को प्राप्त करा सकता है.
परंतु वर्तमान का जो मनुष्य है उसे गुरुडमवाद , बाबावाद तांत्रिकबाबा वाद, झूठे धर्मवाद, धनवाद, गुटवाद, मठवाद, बिरादरीवाद, अहमवाद, ऊँचनीचवाद, गरीब अमीरवाद आदि अनेकों झंझाव्तों, भ्रमों ने घेर रखा है. जिस कारण मनुष्य का आत्मा इन से बाहर नहीं आ पा रहा है और उस परम आनंद को प्राप्त कर पाने में असफल है. जो उपरोक्त वाद हैं उन्हीं को सत्य और लक्ष्य मान बैठा है और उसी में चक्कर काट रहा है.
धन्य है देव दयानंद जिन्होंने उस विज्ञान को पुनर्जीवित किया जो आज भी भारतवर्ष के अंदर लाखों व्यक्तियों के जीवन को प्रकाशित कर रहा है.
प्रभु से प्रार्थना है भारत पर कृपा करें. अंधकार में भटकते लोगों के जीवन में प्रकाश भरें ।
हम सब अष्टांग योग का पालन करने वाले हो। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा ,ध्यान और समाधि का अभ्यास करते हुए परम शिव को प्राप्त करने वाले बने तभी महाशिवरात्रि का उद्देश्य सफल हो सकता है।
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